साथ ले चलो

साथ ले चलो


मुझे भी ले चलो साथ अपने

चलो न देखेंगे साथ मिल कर सपने

तुम होते हो साथ तो सफर आसान लगता है

सारा जहां ही अपना सा लगता है।


जानते हो ना मुझे बिजली के चमकने से डर लगता है

बादलों की गड़गड़ाहट में मन सिहर उठता है

क्यों भूल गए कैसे सीने से मुझे लगाते थे

अपनी उंगलियों से मेरे गालों को छू मेरा होंसला बढ़ाते थे।


याद है वो मंजर मेरे लिए दुनिया से भी लड़ जाते थे

देने को सहारा मुझको अपनों से भी भिड़ जाते थे

घंटों बैठ कर हम तुम कितना बतियाते थे

बेसिर पैर के मंसूबों में चांद पर घर बनाते थे।


याद करो कभी हमने खाई थी ये कसम

जब बांधी थी डोर निभाई थी वो रस्म

वादा किया था साथ जन्म भर चलने का

बांधा था एक बंधन तन मन से जुड़ने का।


क्या वो बंधन झूठा था, नहीं ना

फिर हाथ कब और कैसे छूटा था

जो नहीं, तो प्यार तुम कैसे निभाओगे

मुझे भी साथ ले चलो, तुम अकेले ना जी पाओगे।


आभार – नवीन पहल – १३.१२.२०२१ ❤️🙏🏻🌹😘

# प्रतियोगिता हेतु


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9 Comments

Farhana ۔۔۔

14-Dec-2021 05:04 PM

Good

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Niraj Pandey

13-Dec-2021 11:59 PM

बहुत ही बेहतरीन

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Abhinav ji

13-Dec-2021 11:07 PM

Bahut sundar

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